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उत्तर प्रदेशचंदौलीचंदौली में संघर्ष का प्रतीक बन गया यह शख्स "वहम था मेरा...

चंदौली में संघर्ष का प्रतीक बन गया यह शख्स “वहम था मेरा कि सारा बाग अपना है तूफान के बाद पता चला सूखे पत्तों पर भी हक हवाओं का था.”

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Amitesh Kumar Mishra
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मैं अमितेश कुमार मिश्रा(Amitesh Kumar Mishra) ग्राम -शिवदासीपुर, पोस्ट-शहीदगाँव, जनपद-चंदौली का निवासी हूँ| हमारा उद्देश्य शीर्ष वेब पोर्टल (https://www.vckhabar.in/) के माध्यम से अपनी खबरों द्वारा जनता को सूचना देना, शि‍क्षि‍त करना, मनोरंजन करना और देश व समाज हित के प्रति जागरूक करना है। हम (https://www.vckhabar.in/) ना तो कि‍सी राजनीति‍क शरण में कार्य करते हैं और ना ही हमारे कंटेंट के लिए कि‍सी व्‍यापारि‍क/राजनीतिक संगठन से कि‍सी भी प्रकार का फंड हमें मि‍लता है। युवा पत्रकारों द्वारा शुरू कि‍ये गये इस प्रोजेक्‍ट को भवि‍ष्‍य में और भी परि‍ष्‍कृत रूप देना हमारे लक्ष्‍यों में से एक है। किसी भी प्रकार के खबर/विज्ञापन के लिए आप हमे किसी भी समय +91 9415055028,6306263872 पर काल कर सम्पर्क कर सकते हैं |
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इस संसार में अगर कुछ अपना है तो वह अपना संघर्ष है

“उठ संघर्ष कर,
करता करता मर
पर संघर्ष कर”

रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता अगर किसी पर सटीक बैठती है तो इस कविता को आत्मसात करने वाले अधिवक्ता और संघर्ष का प्रतीक छात्र राजनीति का हस्ताक्षर शैलेंद्र पांडे कवि जिन्होंने संघर्ष के रास्ते के अलावा कभी कुछ नहीं देखा ,वैसे तो राजनीति लोगों के लिए एक शौक बन चुका है अच्छे-अच्छे कपड़े पहनना पर बड़ी गाड़ियों से घूमना ,और सेटिंग गेटिंग ठीक-ठाक करके राजनीतिक दलों से टिकट मांग करके चुनाव में भागीदारी करना यह राजनीति बन गई है
लेकिन चुनावी राजनीति से दूर जनता के प्रति समर्पित अधिवक्ता समाज के प्रति समर्पित छात्रों नौजवानों के प्रति समर्पित गरीबों और दुखिया के प्रति समर्पित होकर के अपराध और गलतियों के खिलाफ आवाज उठाने का चंदौली जनपद में अगर कोई नाम जेहन में आता है वाह धरारा गांव निवासी शैलेंद्र का जिन्होंने आरटीआई के माध्यम से चंदौली जनपद में लड़ाई की शुरुआत की इस लड़ाई को एक हौसला मिल गया ,हौसले को पंख लग गए आज वह लड़ाई भ्रष्टाचार की मशीनरी में पीसे जाने वाले गरीब लोगों की आवाज को मजबूत करने का अगर नाम बना है यह शख्स उस रास्ते पर चलकर सही को सही कहने और गलत को गलत कहने में बिल्कुल नहीं चूकता है

VC खबर के संवाददाता से बातचीत के दौरान जब शैलेंद्र से यह पूछा गया की आपने चुनाव क्यों नहीं लड़ा उनका स्पष्ट मानना था की चुनाव में और चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति बिना विचारधारा के चुनाव को आपकी आवाज को कमजोर कर देता है वोट के लिए आपको समझौता करना पड़ता है वर्तमान लोकतांत्रिक चुनाव की प्रक्रिया धनबल बाहुबल पर आधारित हो गई है यह दुखद है समाज को समाज सेवा के माध्यम से और आंदोलन के माध्यम से ही ठीक किया जा सकता है भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय सदस्य होने के बावजूद भी अधिकारियों के द्वारा की गई किसी भी गलती के खिलाफ तत्काल मुखर होकर के लड़ाई लड़ने की कूबत रखना यह मजाक नहीं है तत्काल में सकलडीहा थाना अध्यक्ष और सकलडीहा क्षेत्राधिकारी के खिलाफ मुहिम चलाकर शैलेंद्र ने युवा संघर्ष मोर्चा संस्था को स्थापित कर आज एक संघर्ष के ब्रांड के रूप में स्थापित कर दिया है वहीं दूसरी तरफ शैलेंद्र के सोशल मीडिया के द्वारा लिखे गए आरोपों के बचाव में उतरी थाना अध्यक्ष सकलडीहा वंदना सिंह जब शैलेंद्र ने लगातार सकलडीहा थाना प्रभारी के खिलाफ मुहिम शुरू की तो लोगों को यहां तक कि विरोधी खेमे को जो उनके इस भ्रष्टाचार की लड़ाई को पसंद नहीं करते हैं उनको भी शैलेंद्र के हौसले का लोहा मानना पड़ा।

शैलेंद्र ने पिछले कई महीने सकलडीहा थाने के द्वारा हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार अपने मुहिम को जारी रखा यहां तक कि शैलेंद्र को लोगों ने कहा कहीं भी आप को फंसाया जा सकता है लेकिन उनके संघर्ष और हौसले की अंतत जीत हुई वही ब्लॉक में भ्रष्टाचार तहसील में भ्रष्टाचार लोक निर्माण विभाग कोई ऐसा विभाग नहीं है जिसमें गलत मालूम चलने के बाद शैलेंद्र किधर आवाज नहीं उठाई जाती हो सकलडीहा में शिक्षा के क्षेत्र में डायट के खिलाफ आंदोलन चलाकर के डाइट प्राचार्य का स्थानांतरण वही सकलडीहा के तत्कालीन वीडियो गुलाब चंद्र के खिलाफ मुहिम चला कर के ब्लॉक में बढ़ रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम और लगातार ऐसे कई मामले जहां पर सरकारी गलतियां की गई है उस गलतियों तथा भृष्टाचार के खिलाफ चट्टान की तरह खड़े होकर इस शख्स के शख्सियत को और मजबूत करता है !
गांव गांव जाकर के लोगों के छोटे-छोटे विवाद को निपटाना भाइयों भाइयों के मध्य समझौता कराना तथा छात्र संघ के माध्यम से छात्र हितों के लिए संघर्ष करना इस शख्स की एक अदा बन गई है और यह शख्स संघर्ष का प्रतीक बन गया है यहां तक की शैलेंद्र के जन्मदिन के अवसर पर लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से उनके जन्मदिन को संघर्ष दिवस के रूप में भी मनाना शुरू कर दिया है इस पूरी कहानी के पीछे शैलेंद्र का एक संघर्षशील इतिहास जो हरिश्चंद्र महाविद्यालय में लोगों को देखने को मिला डेढ़ दशक के बाद आज भी जिंदा है और शैलेंद्र का कहना है कि जब तक विचारों की लड़ाई से और संघर्ष के बल पर और आंदोलन की रूपरेखा से समाज का निर्माण नहीं होगा तब तक उनकी यह लड़ाई जारी रहेगी।

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