हर माह हजारों की कमाई के चक्कर में मकान मालिक सेवा प्रदाता कंपनियों से करार कर टावर लगाने की अनुमति दे देते हैं। हैरानी की बात यह है कि मोबाईल कंपनियां यूडीए, पीडब्ल्यूडी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी लेना भी मुनासिब नहीं समझते। घनी आबादी के बीच अलग-अलग कंपनियों के कई मोबाइल टावर हैं। टावरों के रेडिएशन विकरण से जहां कई रोगों का खतरा रहता है ।वहीं कभी भी बड़े हादसे को नकारा नहीं किया जा सकता। नगर क्षेत्र में भी कई लोग अपने घरों के छतों पर मोबाइल टावर लगा रहे हैं। जानकार बताते हैं कि मोबाइल पर अगर हम घंटा भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिलते हैं। जबकि टावर के पास रहनेवाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। अगर घर के सामने टावर लगा है तो उसमें रहनेवाले लोगों को 2-3 साल के अंदर सेहत से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती हैं। कैंसर के कई मामले सामने आने को मोबाइल टावर रेडिएशन से जोड़कर देखा जा रहा है। घनी आबादी में लगे मानक विहीन टावरों को हटाने के लिए कोर्ट ने भी पूर्व के समय में आदेश दिए थे। सरकार ने भी ऐसे टावरों को हटवाने के निर्देश दिए थे । अलीनगर सकलडीहा रोड पर निर्माणाधीन टावर को लेकर क्षेत्र के लोगों ने सभी के स्वास्थ्य के प्रति जिलाधिकारी का ध्यान आकृष्ट कराते हुए इसे जल्द से जल्द हटाने की मांग की मांग ताडक नाथ गुप्ता, प्रदीप कुमार, इंग्लेश गुप्ता, मनोज कुमार, मनीष कुमार, काजू गुप्ता आदि लोगों ने की है।
इनसेट
मोबाइल टावर घनी आबादी में नहीं होना चाहिए। इसके लिए सरकारी जमीन का उपयोग नहीं होना चाहिए। जिस मकान में टावर लगे उसका नक्शा पास होना चाहिए। मकान को व्यवसायिक उपयोग में लेने की अनुमति हो। टेक्निकल जांच के बाद यूडीए से पास होना चाहिए। बिजली लाइनों के नजदीक में टावर न लगा हो। हाईटेंशन लाइन इतनी दूर हो कि टावर गिरने पर भी न छुए।