चंदौली(Chandauli)यह पूरा जिला प्राचीन काशी राज्य के अधीन था. इस जिले का नाम अपने तहसील मुख्यालय के नाम पर रखा गया है. ऐसा माना जाता है की 14वीं से 15वीं शताब्दी के बीच टोडरमल खत्री ने इसको आकर दिया था, जो की शेरशाह सूरी के राज्य में निर्माण पर्यवेक्षक थे.
यह भारत के 16 महाजनपदों में से एक था. हालाँकि तत्कालीन मुख्यमंत्री सु श्री मायावती द्वारा प्रशासनिक प्रयोजन के लिए वर्ष 1997 में जिला वाराणसी से अलग कर जिला चंदौली का गठन किया गया।चंदौली जनपद का कुल क्षेत्रफल 2,484.70 किमी² है। यहाँ मुख्यरूप से हिंदी और भोजपुरी भाषा बोली जाती है।
चंदौली का इतिहास : History of Chandauli
काशी का अभिन्न हिस्सा होने के कारण चन्दौली का भी इतिहास वही है जो वाराणसी जिले का और काशी राज्य का है। यह पूरा जिला प्राचीन काशी राज्य के अंतर्गत आता था। इस जिले से सम्बन्धित अनेकों प्रचलित कथाओं के अलावा इस जनपद की मूल्यवान धरोहरों के साक्ष्य भी पाये गए हैं। साथ ही ईंट आदि के अवशेष भी मिले हैं। इस जिले के बहुत से भागों का इतिहास आज भी अज्ञात है। इसके बारे में अभी बहुत कुछ ज्ञात होना शेष है।
काशी राज्य पर महाभारत काल के पूर्व में मगध वंश परम्परा के शासक ब्रह्मदत्त का प्रभुत्व था। लेकिन ब्रह्मदत्त के वंश का उत्थान महाभारत युद्ध के बाद हुआ। इस वंश के सैकड़ों राजाओं ने इस राज्य पर शासन किया।
वर्ष 1775 में काशी राज्य अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। जब भारत अंग्रेजों से स्वतंत्र हुआ तब काशी राज्य का भारत में विलय हो गया। इस राज्य के अंतिम राजा महाराज विभूति नारायण सिंह थे जिन्होंने करीब आठ साल तक राज किया।
विश्व भर में ‘धान का कटोरा’ के नाम से प्रसिद्ध है चंदौली जनपद
जनपद चंदौली ‘धान का कटोरा’ के नाम से प्रसिद्ध है। चंदौली धान की खेती के लिए मशहूर है। गंगा के मैदानी इलाकों की उपजाऊ भूमि के कारण यहां गैर-बासमती चावल का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है। पंडित कमलापति त्रिपाठी जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने यहां नहरों का जाल बिछाया था। उसी समय लोग धान की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हुए। जिले में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है।
चंदौली जनपद के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल(Important tourist places of Chandauli district)
पश्चिम वाहिनी मेला,बलुआ घाट(Paschim Vahini Mela Balua Ghat):
एक बहुत ही प्राचीन क्षेत्र बलुआ है जो सकलडीहा तहसील से 22 किमी दक्षिण गंगा नदी के किनारे स्थित है। गंगा नदी यहाँ पूरब से पश्चिम दिशा की तरफ बहती हैं। हिन्दुओं का एक धार्मिक मेला हर साल माघ महीने में मौनी अमावस्या के दिन लगता है। यह ‘पश्चिम वाहिनी मेला’ के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा पूरे देश में केवल दो ही जगह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं। एक तो प्रयागराज में और दूसरा बलुआ में।
राजदरी देवदरी झरने(Rajdari Devdari Waterfalls):




चंद्रपुर वन्यजीव अभयारण्य एशियाई शेरों को बचाने के लिए बनाया गया था। हालांकि अब उनकी आबादी कम हो गई है। यहां जानवरों और पक्षियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां कई अन्य आकर्षण केंद्र है, विशेष रूप से राजधारी और देवदारी झरने। चट्टानों पर घूमते हुए क्रिस्टल क्लियर पानी मन को लुभाता है। पर्यटक आमतौर पर दिनभर की शेर के लिए आते हैं।
लतीफ़ शाह डैम: Latif Shah Dam




लतीफ-शाह डैम (Latif Shah Dam)भारत में सबसे पुराने बांधों में से एक है। इस डैम का निर्माण कार्य 1921 में पूरा हुआ था। यह कर्म-नशा नदी पर बनाया गया है। बांध द्वारा बनाए गए जलाशय मुख्य रूप से सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।
लतीफ़ शाह का मकबरा: Tomb of Latif Shah
यह मकबरा एक सूफी संत हजरत लतीफ शाह बीर रहमतुल्ला से ताल्लुक रखता है। यह मज़ार चकिया से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। कर्मनाशा के तट पर स्थित बाबा लतीफशाह व सैय्यद शाह अजमेरी की मजार और बनवारी दास का मंदिर है। जो एकता, अखंडता और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माने जाते हैं। वैसे तो प्रत्येक शुक्रवार को यहां आस-पास के जनपदों से मुस्लिम जियारत, चादरपोशी और दुआ-ख्वानी करने के साथ-साथ प्रकृति के गोद में बंधे के नीचे पिकनिक भी मनाते हैं, लेकिन वर्ष में एक बार तीज के तीसरे दिन मेला लतीफशाह का व्यापक स्तर पर आयोजन किया जाता हैं।
बाबा कीनाराम जन्मस्थली:Birthplace of Baba Kinaram




बाबा कीनाराम का जन्म भाद्रपद शुक्ल को चंदौली के रामगढ़ गाँव में अकबर सिंह के घर हुआ। बाबा कीनाराम जो की अघोर संप्रदाय की अनन्य आचार्य थे.रामगढ(Ramgarh chandauli)जो की आज चहनिया ब्लाक के अंतर्गत आता है यहाँ आज भी हर वर्ष जन्मदिन का उत्सव मनाया जाता है जो की तीन दिनों तक चलता है जिसमे लाखों श्रद्धालु बाबा के दरबार में मत्था टेकने आते है.
मशहूर धारावाहिक चंद्रकांता का संबंध:Relationship of famous serial Chandrakanta
तिलस्मी अजूबों, रहस्यमय वादियों, अय्यारों की साजिशों, युद्धों के बावजूद चंदौली जिले के नौगढ़ की वादियां विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार विरेंद्र सिंह की अमर प्रेम कथा की गवाह है।
नौगढ़ की इस धरती पर आज भी उनकी प्रेम कहानी के किस्से लोगों की जुबान पर हैं। जिनकी कहानी प्रसिद्ध साहित्यकार देवकी नंदन खत्री की चन्द्रकांता नामक उपन्यास में है। चंद्रकांता तब के मिर्जापुर जो अब सोनभद्र में है, के विजयगढ़ के महाराजा जय सिंह और रानी रत्नगर्भा की एकलौती पुत्री थी। वही राजकुमार विरेंद्र सिंह नौगढ़ राज्य जो अब चन्दौली का हिस्सा है, के राजा सुरेंद्र सिंह के पुत्र थे। बचपन से ही चंद्रकांता और विरेंद्र सिंह के बीच प्रेम की कोपलें फूटी थी। जो समय बीतने के साथ-साथ परवान चढ़ती गई ।
हेतमपुर का किला:Hetampur Fort




चंदौली जिले के सकलडीहा-कमालपुर मार्ग से नौरंगाबाद जाने वाली सड़क पर धानापुर विकास क्षेत्र के गांव हेतमपुर का भी काफी पुराना इतिहास है। जानकारी के अनुसार नौरंगाबाद से दो किमी उत्तर स्थित शेरशाह सूरी के जागीरदार हेतमखां ने करीब 600 वर्ष पूर्व तीन किलों का निर्माण कराया था जो अब भी विरासत के रूप में मौजूद हैं। जिसे भुलैनी कोर्ट के नाम से जानते हैं। इसे अब पुरातत्व विभाग पटना ने अपने संरक्षण में ले लिया है।
चंदौली जिले की भौगोलिक स्थिति(Geographical Location of Chandauli District)
चंदौली उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में बिहार की सीमा से लगा हुआ है.
जनपद चंदौली वाराणसी से 30 किलोमीटर दूरी पर पूर्व-दक्षिण-पूर्व में अक्षांश 24°56′ से 25°35 उत्तर एवं 81°14′ से 84°24′ पूर्व में स्थित है.
चन्दौली के पूर्व दिशा में बिहार राज्य, उत्तर पूर्व में ग़ाज़ीपुर जनपद एवं दक्षिण में सोनभद्र एवं लहुरी काशी कहे जाने वाला ग़ाज़ीपुर जनपद उत्तर-ऊतर-पूर्व में स्थित है तो वही दक्षिण पश्चिम में मिर्ज़ापुर जनपद की सीमाओं से घिरा हुआ है.यही नही कर्मनाशा नदी इस जनपद और बिहार राज्य के मध्य की विभाजन रेखा है.
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