Tuesday, March 28, 2023
धर्ममाघ गुप्त नवरात्रि जनवरी 2023 पूजा विधि शुभ मुहूर्त

माघ गुप्त नवरात्रि जनवरी 2023 पूजा विधि शुभ मुहूर्त

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गुप्त नवरात्र रविवार से शुरू रहा है। अंगधात्री शक्तिपीठ ट्रस्ट की ओर से अंग की कुलदेवी माता अंगधात्री का नवरात्र महापर्व 22 जनवरी से 31 जनवरी तक बूढ़ानाथ मंदिर के पिछले प्रशाल में मनाया जायेगा। व्यवस्थापक आचार्य पंडित अशोक ठाकुर ने बताया कि आज सुबह दस बजे से प्रधान कलश की स्थापना की जाएगी। साथ ही चंडी पाठ का संकल्प, पूजन के साथ संध्या आरती सात बजे की जाएगी। 28 जनवरी को सुबह कलश पूजन, पाठ व माता अंगधात्री की प्रतिमा की स्थापना की जाएगी। रात में निशा पूजा होगी। 29 जनवरी को महाष्टमी पूजन पाठ, रंगोली व संध्या सात बजे दीप महायज्ञ के साथ भजन संध्या का आयोजन किया जायेगा। 30 जनवरी को महानवमी पूजन के साथ हवन व कन्या पूजन होगा। 31 जनवरी को महादशमी पूजा व विसर्जन होगा।

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10 महाविद्याओं की होती है पूजा: नवरात्रि में जहां देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है वहीं गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं मां काली, मां तारा देवी, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला देवी की साधना आराधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि में शक्ति की साधना को अत्यंत ही गोपनीय रूप से किया जाता है। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि की पूजा को जितनी ही गोपनीयता के साथ किया जाता है, साधक पर उतनी ज्यादा देवी की कृपा बरसती है।

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इस तरह करें पूजा: गुप्त नवरात्रि के दिन साधक को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करके देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को एक लाल रंग के कपड़े में रखकर लाल रंग के वस्त्र या फिर चुनरी आदि पहनाकर रखना चाहिए। इसके साथ एक मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोना चाहिए। जिसमें प्रतिदिन उचित मात्रा में जल का छिड़काव करते रहना होता है। मंगल कलश में गंगाजल, सिक्का आदि डालकर उसे शुभ मुहूर्त में आम्रपल्लव और श्रीफल रखकर स्थापित करें। फल-फूल आदि को अर्पित करते हुए देवी की विधि-विधान से प्रतिदिन पूजा करें। अष्टमी या नवमी के दिन देवी की पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें पूड़ी, चना, हलवा आदि का प्रसाद खिलाकर कुछ दक्षिण देकर विदा करें। गुप्त नवरात्रि के आखिरी दिन देवी दुर्गा की पूजा के पश्चात् देवी दुर्गा की आरती गाएं। पूजा की समाप्ति के बाद कलश को किसी पवित्र स्थान पर विसर्जन करें।

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