वे भारत माता के एक सच्चे और बहादुर पुत्र थे, जो सैन्य विद्रोह के माध्यम से ब्रिटिश शासन को भारत से जड़ से उखाड़ कर फेंक देना चाहते थे। उनके दिए ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा….!’ व ‘जय हिन्द’ जैसे नारे आज भी युवाओं के दिलों और माहौल को देशभक्ति से भर देते हैं।
नेताजी की जीवनी, उनके विचार और उनका कठोर त्याग आज के युवाओं के लिए बेहद प्रेरणादायक है। सुभाष चंद्र बोस की जयंती पराक्रम दिवस के मौके पर स्कूल-कॉलेजों में नेताजी पर आधारित भाषण व निबंध प्रतियोगिता आयोजित होती हैं। अगर आपको भी ऐसी किसी भाषण प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है तो आप नीचे दिए गए भाषण से उदाहरण ले सकते हैं।
यहां देखें पराक्रम दिवस पर भाषण का उदाहरण ( Parakram Diwas Speech in Hindi )
यहां उपस्थित प्रधानाचार्य महोदय, आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों। आप सभी को मेरा प्रणाम। आज हमारा देश पराक्रम दिवस मना रहा है। आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बहादुरी और अदम्य साहस का परिचय दिया। उनकी जयंती 23 जनवरी को भारत सरकार ने पराक्रम दिवस के तौर पर घोषित किया हुआ है। नेताजी के विचारों और अंदाज से भारतीय युवा वर्ग स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने के लिए प्रेरित हुआ। वह कहते थे कि सबसे बड़ा अपराध, अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है। उन्हें अपना जीवन भी इसी सिद्धांत के साथ जिया। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा….! जय हिन्द। चलो दिल्ली, जैसे नारों से आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था।
नेताजी ने भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास कर ली थी। वे चाहते तो जीवन भर आराम की नौकरी कर सकते थे। लेकिन इसे ठुकराकर उन्होंने अपना सारा जीवन भारत मां की सेवा में लगा दिया। जलियांवाला बाग कांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें कई बार जेल में डाला गया लेकिन देश को आजाद कराने का उनका निश्चय और दृढ़ होता चला गया। हिंसक कृत्यों में अपनी संदिग्ध भूमिका के लिए उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया।
1941 में वह भेष बदलकर कोलकता से भाग गए और काबुल और मॉस्को होते हुए जर्मनी पहुंच गए।
जर्मन प्रायोजित आजाद हिंद रेडियो से जनवरी 1942 से अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली, तमिल, तेलुगु, गुजराती और पश्तो में नियमित प्रसारण शुरू किया। अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को ‘आजाद हिंद सरकार’ की स्थापना करते हुए ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे। यहां उन्होंने नारा दिया ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’ उनका मानना था कि अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता नहीं पाई जा सकती। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सोवियत संघ, नाजी जर्मनी, जापान जैसे देशों की यात्रा की और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सहयोग मांगा।
साथियों, आज का दिन नेताजी के जीवन और त्याग व बलिदान से सीख लेने का दिन है। उनके प्रेरणादीय विचारों को जीवन में उतारने का दिन है। आज हमें उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।
इसी के साथ मैं अपने भाषण का समापन करना चाहूंगा। जय हिन्द। भारत माता की जय।