- टकटकी लगी निगाहे आज भी सरकारी अफसरों की आने की उम्मीद सजोये हुए है कि आर्थिक तंगी से उबारने व रोजगार देने कही से आ जाये सरकारी अफसर
- पापा के मौत के बाद बन्द हो गयी रेडीमेड वस्त्रालय की एक दुकान दो वक्त की रोटी के लिए दूसरे दुकान पर दिन भर बैठकर देखता हूँ ग्राहकों की राह-मनीष गुप्ता
वाराणसी – कोविड-19 वैश्विक महामारी को लगे सोमवार को पूरे एक वर्ष हो गया,ज्ञात हो कि बीते 22 मार्च 2020 को ही कोविड-19 को लेकर लॉक डाउन की घोषणा की गई थी।वैश्विक महामारी कोरोना काल के दौरान कोविड-19 के चपेट में आ जाने से कितने लोगों का घर उजड़ गया तो वहीं कितने लोगों के बीच परिवार का भरण-पोषण करना एक जटील समस्या बन गयी।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक कोरोना के चपेट में आने से रोहनिया थाना क्षेत्र के गंगापुर निवासी श्री प्रकाश गुप्ता की इलाज के दौरान बीएचयू ट्रामा सेंटर में मौत हो गयी थी,मृतक श्रीप्रकाश दो रेडीमेड वस्त्रालय का दुकान राजा दरवाजा व गंगापुर में चलाकर अपने साथ साथ 10 लोगो का भरण पोषण करते थे।श्री प्रकाश गुप्ता के मौत हो जाने के बाद राजा दरवाजा बनारस की दुकान बंद हो गयी,ज्येष्ठ पुत्र मनीष व छोटे पुत्र तुसार गंगापुर कपड़े का दुकान चलाकर परिवार का भरण पोषण करते है।
मृतक श्रीप्रकाश गुप्ता के पास दो पुत्र,दो बहु,चार पोता के साथ पत्नी ज्योत्सना गुप्ता है।वही इस बाबत मनीष गुप्ता का कहना रहा कि पिता के मौत के बाद आज तक कोई सरकारी अफसर आर्थिक मदद व सहायता देने नही आये ना ही घर आकर कोई भी अधिकारी हाल समाचार भी लेने को मुनासिब समझा,पिता के मौत के बाद एक दूकान बन्द हो गयी जिससे परिवार की माली हालात काफी खराब हो चुकी है परिवार चलाना भी इस वक्त दुश्वार हो गया है।वही दूसरी ओर नरउर गाँव के राम प्रसाद सिंह की भी कोविड के चपेट में आने से मौत हो गयी,मौत के बाद बुजुर्ग पत्नी का रो रोकर बुरा हाल है।मृतक राम प्रसाद को 3 पुत्रियां ही है सभी की शादी हो चुकी है।मृतक गरीब किसान है,अभी तक कोई सहायता राशि नही मिली पत्नी आस लगाए बैठी है कि कैसे गुजारा होगा,बारी बारी से तीनों पुत्रियां आकर माँ की देखभाल करती है।
शहाबाबाद निवासिनी पूनम जायसवाल पत्नी रामजी जायसवाल की भी मौत कोरोना काल मे हो गयी जिनके पास तीन पुत्र व एक पुत्री है।मृतका के पति किराना की छोटी सी दुकान चलाकर बच्चों का पालन पोषण करता है।आज तक स्वास्थ्य विभाग व सरकारी अफसरों द्वारा उक्त सभी लोगो को कोई आर्थिक सहयोग व मदद नही मिली।एक वर्ष बीतने के बाद भी सभी पीड़ित परिवारों की आँखे घर के सामने सड़को पर टिकी रहती है कि कहि से सरकारी गाड़ी हॉर्न बजाते आ जाये जिससे कुछ सहायता मिल सके।