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अलीगढ़ का ऊपर कोर्ट बाजार
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
हर शहर के बाजार कुछ खास होते हैं। ताला और तालीम से पहचाने जाने वाले अलीगढ़ के बाजारों की भी अपनी खासियत हैं। यहां सौ साल से पुराने बाजार आज भी गुलजार हैं। ऊपरकोट, रेलवे रोड, सब्जी मंडी, महावीरगंज, बारहद्वारी लगभग एक सदी पहले से बसे बाजार हैं। इसके बाद छिपैटी, कनवरीगंज, बड़ा बाजार, जयगंज, मदारगेट, दुबे का पड़ाव बाजार बसते गए। इस बीच फफाला दवाओं का बाजार बन गया। जब शहर का दायरा बढ़ा तो सेंटर प्वांइट बाजार बना, जो समद रोड से लेकर मैरिस रोड तक फैला हुआ है। वहीं, दूसरी ओर रामघाट रोड का विस्तृत बाजार है। फैशन और सस्ते कपड़ों की पहचान बन चुका अमीर निशा भी किसी से कम नहीं हैं।
ऊपरकोट
बात 100 वर्ष पुरानी है । शहर के बीचों-बीच बड़ा टीला हुआ करता था। यहां धीरे-धीरे बसावट होने गली। आजादी के बाद से घनी आबादी के रुप में यह विकसित होने लगा। आबादी बढ़ी तो लोगों की जरूरतों के लिए यहां दुकानें खुलने लगीं। इसी के साथ यहां ऊपरकोट बाजार विकसित हो गया । चूंकि यह काफी ऊंचाई पर यह स्थान है, इसलिए बाजार की पहचान इसी नाम से हो गई । इस बाजार की खास बात है कि यहां कपड़े खरीदने शहर भर से लोग आते हैं। यहां का कुर्ता-पायजामा जो एक बार पहन ले वो दोबारा खरीदारी करने फिर आता है । इसलिए हाथरस, कासगंज, एटा, आगरा, मथुरा, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, चंदौसी, बरेली आदि जिलों तक के लोग यहां पर कुर्ता-पायजामा खरीदने आते हैं।
ऊपरकोट बाजार लजीज व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है। तंदूर की रोटी, शाही पनीर, कोरमा, मीठी रोटी, मिठाई, रसमलाई खूब पसंद की जाती है । एक समय यहां बनने वाले मठरी को पूरे शहर के लोग यहीं से खरीद कर ले जाते थे। ऊपरकोट पर जामा मस्जिद बाजार की शान है । यह मस्जिद करीब 200 साल से भी अधिक समय पुरानी की बताई जाती है। मस्जिद के आसपास भी कपड़े आदि की दुकान है। ऊपरकोट की तरफ चढ़ते समय चारों ओर कपड़ों की दुकानें दिखाई देती है। शुक्रवार को तो यहां सजने वाले बाजार में खरीदारी करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
मामू-भांजा
संकरी से गली में बसे मामू भांजा में कभी शहर के बड़े सेठों के कपड़े धुलते और प्रेस होते थे। रेलवे रोड से ऊपरकोट तक रहने वाले सेठों के कपड़े इसी बाजार में धुलते थे। जब बाजार विस्तारित हुआ तो मामू भांजा के लोगों ने कारोबार बदला और अब ये इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार के रूप में प्रसिद्ध है। आसपास के कई जिलों में यहां से सीधे माल की सप्लाई होती है। वर्ष 1700 के आसपास मुगलों का शासन था। अंग्रेज कब्जा करना चाहते थे, उनकी मुगलों से लड़ाई चल रही थी। मुगल सेना के सिपाही बारे खां बाबा अपने परिचित एक योद्धा व उसके दो भांजों को लाए और युद्ध लड़ा। जिसमें दोनों की मौत हो गई। उनकी मजार बाजार के चौराहे के पास आज भी बनी हुई है। 65 साल पहले रोडियो वाली गली बनी।
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