31 C
Lucknow
spot_img
  • Maxwell hospital private limited
varanasiभारतीय लोकतंत्र का खोखला खंभा

भारतीय लोकतंत्र का खोखला खंभा

spot_img
- Advertisement -
  • sp surgical and fractures hospital chandauli

भारतीय समाचार पत्र

आज हमारे लिए बहुत ही दुखद है कि हम सब को आजाद हिंदुस्तान में रह कर भी हिंदी की आज़ादी के लिए लड़ना पड़ रहा है

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जा रहा है। इसी तिथि को पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने 1826 ई. में प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरम्भ किया था। भारत में पत्रकारिता की शुरुआत पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने ही की थी।

बेहद शर्मसार करने वाली बात है कि जो इक्का दुक्का लोग इस हिन्दी की लड़ाई को हिंदुस्तान में अपने कलम के सहारे लड़ रहे हैं, उनको वर्तमान में युवाओं का समर्थन भी नहीं मिल रहा अपितु उन्हें गवार व अनपढ़ की संज्ञा से नवाजा जा रहा है

समाज में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि यह जनता और सरकार के बीच सामंजस्य बनाने में मदद करता है. लेकिन ये अब ऐसे स्तर पे आ गया है जहां लोगों का भरोसा ही इस पर से खत्म होता जा रहा. इसका अत्यधिक व्यावसायीकरण ही शायद इसकी इस हालत की वजह है. पर जहां तक मैं सोचता हूं इसके लिए अनेक कारक हैं जो इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं.  सोशल साइट्स, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट के जमाने में प्रिंट मीडिया कमजोर हो चला. क्योंकि व्हाट्सएप्प, ट्विटर और फेसबुक पर हर समाचार बहुत ही तेज़ी से फ़ैल जाता  है और मिर्च मसाला लगाने में भी आसानी हो जाती है लोगों को.  वायरल का फैशन चल पड़ा है तो कौन सुबह तक इंतज़ार करेगा? सभी समाचार पत्रों के ऑनलाइन एडिशन भी आ गए हैं पर उतने लोकप्रिय नहीं हैं, सभी अब फेसबुक का सहारा लेते हैं. क्या डिजिटल युग का आना ही  इसकी लोकप्रियता कम होने का एकमात्र कारण है? न्यूज चैनलों की बाढ़ सी आ गयी है पर आज सच्ची और खोजी पत्रकारिता में गिरावट आ गयी, सभी मीडिया हॉउस राजनितिक घरानों से जुड़े हुए हैं, टीआरपी बढ़ाने की होड़ लगी है, ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा आम है, देश की चिंता कम विज्ञापनों की ज्यादा है. ये कारण भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं.

राजनीति और पूंजीवाद से मीडिया की आजादी पर भी खतरा मंडरा रहा. पिछले कुछ वर्षों में मीडिया से जुड़े कई लोगों पर कितने ही आरोप लगे, कुछ जेल भी गए तो कुछ का अब भी ट्रायल चल रहा.  आज पत्रकारिता और पत्रकार की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठता है? आखिर हो भी क्यों नहीं? वो जिसे चाहे चोर बना दे, जिसे चाहे हिटलर. कोर्ट का फैसला आता भी नहीं पर मीडिया पहले ही अपना फैसला सुना देता है. किसी का महिमामंडन करने से थकता नहीं तो किसी को गिराने से पीछे हटता नहीं. आज मीडिया का कोई भी माध्यम सच दिखाने से ही डरने लगा है.  कहीं आज मीडिया सरकार से तो नहीं डर रहा? खोजी पत्रकारिता का असर कुछ भयानक होने लगा है.  

युवाओं की चाटुकारिता व सरकार के गलत निर्णय का विरोध न होने का नतीज़ा.

सभी लोग, हम, आप और मीडिया बदलाव की बात तो करते हैं पर इनमें कोई भी बदलना नहीं चाहता. सभी एक ही नाव पर सवार हैं पर स्थिति तो डंवाडोल और नाजुक है. जो आम जनता की आवाज़ है वही कराह रहा तो कौन खड़ा होगा समाज को आइना दिखाने के लिए? सरकार और सरकार के कार्यों पर कौन नज़र रखेगा? हमारी और आपकी परेशानियों को सरकार तक कौन पहुंचायेगा? विद्यार्थियों, कामगारों और आम जनता की आवाज कौन बनेगा? अब भी वक़्त है कि हम संभल जायें, चकाचौंध, टीआरपी की दौड़ और पैसों के पीछे न भाग हम निष्पक्ष पत्रकारिता पर ध्यान दें तो शायद लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ टूटने से बच जाये.

निष्पक्ष पत्रकारिता

- Advertisement -
जरूर पढ़े
Latest News

More Articles Like This

You cannot copy content of this page