
भांवरकोल। स्थानीय विकास खंड क्षेत्र के फखनपुरा ग्राम पंचायत के उत्तरी सिवान स्थित बीरान जंगल में बाला साहेब की मजार पर कार्तिक पूर्णिमा के बाद आने वाले पहले जुमा को आयोजित होने वाला एक दिवसीय चादरपोशी/ऊर्स का मेला — जिसे ‘बाला का मेला’ के नाम से जाना जाता है — आज तड़के सुबह से देर शाम तक पूरी शान-शौकत के साथ सम्पन्न हुआ।
परंपरागत रूप से सुबह फातिहा अदा कर चादर पेश की गई। मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से यहां मिन्नत मांगता है, वह खाली नहीं लौटता। यही कारण है कि इस मेले में मुस्लिम समाज के साथ-साथ हिंदू समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में शिरकत करते हैं। यहां जाति-धर्म का कोई भेदभाव नहीं—बाबा के दरबार में आने वाला हर भक्त अपनी झोली भरकर लौटता है।
दर्जनों सालों से लग रहा यह मेला सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। बाला साहेब के सेवादारों के अनुसार, हर दिन विभिन्न धर्मों के लोग भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति और मनोकामना पूर्ति की अरदास लेकर मजार पर पहुंचते हैं। बाबा के मजार का सटीक इतिहास भले न बताया जा सके, लेकिन क्षेत्रवासियों की श्रद्धा अटूट है।
हल्की ऊँचाई वाले पठारी क्षेत्र में स्थित मजार बारिश और बाढ़ के समय दूर-दराज के पशुपालकों के लिए भी सुरक्षित आश्रय स्थल बन जाती है। मेले में मिठाइयों, खिलौनों, झूलों, जूते-कपड़ों की दुकानों की खूब चहल-पहल रही। लोगों ने दिनभर खरीदारी और घूमने-फिरने का आनंद लिया।
इस एक दिवसीय मेले की अनुमति एसडीएम मुहम्मदाबाद डॉ. हर्षिता तिवारी द्वारा जारी की गई थी। मेले में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए मच्छटी चौकी प्रभारी श्याम सिंह ने पुलिस टीम के साथ चप्पे-चप्पे पर निगरानी की।
कुल मिलाकर, हर साल की तरह इस बार भी बाला साहेब की दरगाह पर लगा यह मेला अमन, सद्भाव और हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का संदेश देकर देर शाम संपन्न हो गया।








