
भांवरकोल — विकसित भारत के तहत केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत में लाखों रुपये की लागत से सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण तो करा दिया गया, साथ ही देखरेख के लिए छह हजार रुपये मानदेय पर केयरटेकर की भी नियुक्ति की गई है। नियम के अनुसार शौचालय की साफ-सफाई से लेकर इसे सुबह 5 बजे से 10 बजे तक तथा शाम 5 बजे से 8 बजे तक खोलने-बंद करने की जिम्मेदारी भी निर्धारित की गई है। स्त्री एवं पुरुषों के लिए अलग-अलग शौचालय, स्नान, तौलिया सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकार हर महीने अतिरिक्त तीन हजार रुपये भी देती है। कागजों में यह सभी शौचालय नियमित रूप से संचालित बताए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।
इसका ताजा उदाहरण स्थानीय विकास खंड के कठार गांव में प्राथमिक विद्यालय के पास बना सार्वजनिक शौचालय है, जिसकी केयरटेकर रंभा देवी हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि यह शौचालय पूरी तरह लावारिस अवस्था में पड़ा हुआ है। शौच के बाद पानी उपलब्ध न होने से लोगों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। शौचालय 24 घंटे खुला रहता है और भीतर आवश्यक वस्तुओं का पूरी तरह अभाव है। गांव के दयाशंकर यादव, राकेश यादव, बैजनाथ शर्मा आदि ने बताया कि न तो नियमित सफाई होती है, न ही केयरटेकर के आने-जाने का कोई समय पता चलता है। जगह-जगह टाइल्स टूटे पड़े हैं और दरवाजे भी क्षतिग्रस्त हैं।
वहीं ग्राम प्रधान आनंद यादव ने सभी आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि शौचालय नियमित रूप से संचालित है और कुछ लोग बिना कारण बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। सचिव महताब ने बताया कि यह शौचालय उनके कार्यकाल से पहले बना था, लेकिन पद संभालने के बाद जो भी कमियाँ दिखीं, उन्हें दूर कराया गया है और आगे भी आवश्यकतानुसार सुधार कराया जाएगा।
एडीओ पंचायत सूर्यभान राय ने कहा कि मामला उनके संज्ञान में आया है, वे स्वयं स्थल निरीक्षण कर आवश्यक सुधार कार्य सुनिश्चित कराएंगे।
कुल मिलाकर, कठार का यह सार्वजनिक शौचालय सरकारी दावों और वास्तविकता के बीच की दूरी को स्पष्ट रूप से उजागर करता है।







