उत्तराखंड

Opinion: केदारनाथ उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे प्रदेश की सियासत का भविष्य

उत्तराखंड की केदारनाथ सीटों पर उप चुनाव की जीत भाजपा और कांग्रेस दोनों की पार्टियों के महत्वपूर्ण बन गई है। जहां कांग्रेस अपनी डूबती नैया पार लगाना चाहती है तो दूसरी ओर भाजपा भी मंगलौर और बद्रीनाथ सीट पर मिली हार के बाद सत्ताधारी धामी सरकार की स्थिरता कायम रखने के लिए चुनावी रण में उतरी है। कांग्रेस पुष्कर धामी सरकार को दिल्ली में केदारनाथ मंदिर बनाने की बात को लेकर छोड़ने को तैयार नहीं है तो सीएम धामी ने भी बाबा केदारनाथ की सौगंध खाकर इस फैसले से खुद को किनारा कर लिया।

दोनों ही पार्टियों ने पुराने नेताओं पर भरोसा दिखाया है। जहां कांग्रेस ने पूर्व विधायक मनोज रावत को अपना उम्मीदवार बनाया तो भाजपा ने भी अपनी पूर्व विधायक आशा नौटियाल को चुनावी रण में उतारा।

कांग्रेस ने इस सीट पर पूरा दमखम लगा दिया है पार्टी के तमाम बड़े नेता केदारघाटी में डेरा डाले हुए हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, हरक सिंह रावत सहित कई कांग्रेसी दिग्गज नेताओं ने विभिन्न रैलियां आयोजित की। वहीं चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं की रैलियां और रोड़ शो में भी स्वयं सीएम धामी सहित कई मंत्री पहुंचे। हालांकि हार और जीत चुनावी नतीजों के बाद ही तय होंगा।

कांग्रेस ने घेरा

केदारनाथ सीट पर विपक्षी दल कांग्रेस ने भाजपा को बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड से लेकर दिल्ली में केदारनाथ मंदिर सहित कई मुद्दों पर घेर लिया है। इस सीट पर दो राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा अन्य निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी रण में उतर गया है जिसने दोनों पार्टियों को चिंता बढ़ा दी है।

Deepak Panwar

पत्रकार, एडिटर, वेब डेवलपर... माहोल के हिसाब से कुछ भी

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