जुमा मस्जिद के पेश इमाम मुश्ताक अहमद ने पढ़ाई। नमाज ठीक सवा बजे शुरू हुई। नमाज में ढाई सौ करीब नमाजी थे। इस्तेस्का नमाज दो रकअत पढ़ी गई। नमाज के बाद बारिश के लिए खास दुआ भी हुई। अमूमन दुआ में हाथों को बुलंद किया जाता है, लेकिन नमाज-ए-इस्तेस्का में हथेलियों को नीचे जमीन की तरफ कर दुआ मांगी गई। नमाज और दुआ साढ़े नौ बजे खत्म हुई।
मैदान में पढ़ी जाती है ये खास नमाज़
मस्ज़िद के मुतवल्ली इकबाल अहमद ने बताया कि जब गांव में सूखे के आसार हों। पानी नहीं बरस रहा हो या कम बरस रहा हो। इलाके में पानी की किल्लत हो। पानी के स्रोत कम हो गए हों तो ये नमाज पढ़ी जाती है। ये नमाज पैगंबर-ए-अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. की सुन्नत है। इस खास नमाज को मस्जिद में नहीं बल्कि खुले मैदान में सूरज निकलने के बाद पढऩा है। इस विशेष नमाज के लिए घर से नंगे पैर और नंगे सिर साथ कुछ कुछ मात्रा अनाज का लेकर आना होता है । अनाज का सदक़ा किया जाता है।