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Ghazipur news: कुँअर नसीम रज़ा का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 में दर्ज

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*इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में 118 वर्ष पुरानी भारतीय उर्दू मतदाता सूची हुआ शामिल*

सेवराई । तहसील क्षेत्र के अंतर्गत दिलदारनगर  गांव स्थित अल दीनदार शम्सी म्यूज़ियम एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक व निदेशक एवं संग्रहकर्ता कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा ने संग्रहालय के लिए पिछले 20 वर्षों से ऐसे कई पांडूलिपियों, दूर्लभ प्राचीन वस्तुओं का संग्रह कर रखा है। इन्हीं में से 118 वर्ष पूर्व भारतीय उर्दू भाषा मतदाता सूची को राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे संरक्षित कर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 में अपना नाम दर्ज करवाया है। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड की ओर से शुक्रवार को सर्टिफिकेट, मेडल, बाक्स आदि प्राप्त हुआ।

*46 सदस्य उन 4 सदस्यों को मतदान के जरिए चुनाव करते थे….*

उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची में सर्वप्रथम सन् 1904-1905 ई.(उर्दू) 1906-1907 ई.(उर्दू) 1918-1919 ई.(उर्दू) एवं 1945 ई. (हिन्दी, उर्दू) के कुल 5 मतदाता सूची सुरक्षित किए गए हैं। उर्दू मतदाता सूची ब्रिटिश शासन काल का उत्तर प्रदेश के जनपद गाजीपुर के परगना, तहसील वर्तमान विधानसभा ज़मानिया क्षेत्र का है। प्रत्येक सन् के मतदाता सूची में सिर्फ 50 लोगों के नाम अंकित किए गए हैं। तब इस तहसील में कुल 50 वोटर हुआ करते थे और उन्हीं वोटरों में से 4 प्रत्याशियों का चयन होता था। बाकी 46 सदस्य उन 4 सदस्यों को मतदान के जरिए चुनाव करते थे। चुने गए मेंबर क्षेत्र के विकास के लिए काम करते थे।

*क्षेत्र के हर गांव से तीन-चार मानिंद लोगों का चयन किया जाता था..*

आजादी से पूर्व वर्ष 1900 में तहसील क्षेत्र के विकास के लिए लोगों का चुनाव किया जाता था। मतदाता सूची तैयार करने के लिए क्षेत्र के हर गांव से तीन-चार मानिंद लोगों का चयन किया जाता था। इस तरह कुल 50 लोगों की सूची तैयार की जाती थी इन्हीं में से उनकी योग्यता के अनुसार चार लोगों को उम्मीदवार बनाया जाता था। उसमें से चयनित प्रत्याशी ही क्षेत्र के विकास के लिए अपनी समस्याओं को जिला बोर्ड में रखते थे।

*लोगो को वोट देने का अधिकार…*

इस मतदाता सूची में क्षेत्र के जमींदारों एवं मुखियाओं को रखा जाता था। जो सरकार को लगान/कर जमा करते थे। उन्हीं लोगों को वोट देने का अधिकार था। यह मतदाता सूची मुहम्मद नसीम रज़ा ख़ाँ के पूर्वजों से प्राप्त हुआ है। इनमें इनके परिवार के चार पूर्वज ज़मींदारों सहित दादा परदादा का नाम अंकित हैं।

*1884 में इसे पूरी तरह से किया गया लागू…..*

कुंवर मुहम्मद नसीम रजा खान ने बताया कि अंग्रेजों ने वर्ष 1857 के बाद लोकल सेल्फ गवर्नमेंट कानून पारित किया कुछ वर्षों बाद वर्ष 1884 में इसे पूरी तरह से लागू कर दिया। इसका उपयोग स्थानीय विकास के लिए किया जाता था। स्थानीय समस्याओं के निवारण के लिए कमेटी का चयन किया जाता था। इस सूची में वही लोग सदस्य बनाए जाते थे जो करदाता होते थे। चयनित सदस्य स्थानीय मुद्दों को उठाकर उनका निवारण करते थे। हालांकि इसमें संशोधन के बाद पहली बार इलेक्शन एक्ट 1909 में पारित हुआ था इसके बाद बदलते समय के साथ लगातार इसमें संशोधन होते रहे।

*120 वर्ष पुरानी उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची…..*

चुनाव आयोग ने छपवाए 397 अखबार। 1951 में हुए पहले आम चुनाव से सही मायने में भारत में लोकतंत्र का आगाज हुआ। उस समय चुनाव आयोग को मतदाताओं को चुनाव को लेकर जागरूक करने के लिए अखबार छपवाने पड़े थे। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को चिंता इस बात को लेकर थी कि 18 करोड़ मतदाताओं को कैसे वोट’ देने के लिए प्रेरित किया जाए। उन्हें कैसे बताया जाए कि उनका बूथ कहां है, मतदान कैसे करना है। इसके लिए अलग-अलग भाषाओं के 397 अखबार शुरू किए गए। इन अखबारों में चरणबद्ध तरीके से लोगों को समझाया और बताया गया कि कहां और कैसे मतदान होगा? तथा मतदान से क्या बदल जाएगा।आज़ादी के बाद ज़मानिया उत्तर प्रदेश विधानसभा का एक निर्वाचन क्षेत्र है। विकिपीडिया के मुताबिक जनपद गाजीपुर के विधानसभा जमानिया में सन् 2014 ई. के चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 3,87,810 था जिसमें महिला एवं पुरुष शामिल हैं। जबकि सन् 1904-1905 एवं 1906-07 ई. में कुल मतदाताओं की संख्या 50 ही थी जिसमें केवल पुरुष ही शामिल थे। वहीं सन् 1945 ई. के मतदाता सूची में सिर्फ 25 मुस्लिम पूरूषों का नाम अंकित किए गए हैं, यह मतदाता सूची सिर्फ मुस्लिम वर्ग के लिए तैयार किए गए हैं। उस समय के क्षेत्रीय ज़मींदार, गाँव के मुखिया आदि के नाम अंकित हैं। यह वोटर लिस्ट हिन्दी एवं उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित किया गया है।
समय बीता आजादी के बाद चुनाव की महत्ता बढ़ती गई। मतदान और भी लोकप्रिय होते गए। मतदाताओं की संख्या में दिन प्रतिदिन कई गुना की बढ़ोत्तरी होती रही।
भारतीय संविधान ने आज वोट देने के अधिकार को अमीरों, जमींदारो, मुखियाओं एवं मानिंद हस्तियों से बाहर निकालकर गरीबो एवं ग्रामीण परिवेश में आम जनमानस तक पहुंचा दिया। आज भारत के 18 वर्ष से लेकर प्रत्येक नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है। इसलिए इतिहास के दृष्टिकोण से भारत के लोकतंत्र एवं चुनाव प्रक्रिया को जानने एवं समझने के लिए पिछ्ले लगभग 120 वर्ष पुरानी उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची जो अपने आप में एक दुर्लभ, अनूठा, अतिमहत्वपूर्ण, ऐतिहासिक दस्तावेज, अभिलेख एवं पांडुलिपि है तथा राष्ट्रीय धरोहर है।

*संग्रहकर्ता मुहम्मद नसीम रज़ा खां ने भारतीय मतदाता सूची/वोटर लिस्ट संंग्रहित, संरक्षित कर एक अनूठा रिकॉर्ड बनाया*****

आज़ादी से पूर्व का यह उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची एक अद्भुत संंग्रह है तथा अखंड भारत (भारत, पाकिस्तान, और बांग्लादेश) के शोधकर्ताओं एवं इतिहासकारों के लिए विशेष महत्वपूर्ण का है। यह दुर्लभ उर्दू मतदाता सूची संभवतः भारत में एकमात्र पांडुलिपि/दस्तावेज़ात सुरक्षित बची हुई है। जिसको कुँअर नसीम रज़ा ने राष्ट्रीय पाण्डुलिपि संरक्षण का कार्य किया है। इसलिए संग्रहकर्ता मुहम्मद नसीम रज़ा खां ने भारतीय मतदाता सूची/वोटर लिस्ट संंग्रहित, संरक्षित कर एक अनूठा रिकॉर्ड बना दिया है।

इसलिए भारत के इस एकमात्र उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड ने नसीम रज़ा के नाम दर्ज कर सर्टिफिकेट, मेडल, पेन, बैज एवं इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 की पुस्तक प्रदान कर सम्मानित किया। जिससे ग्रामवासी, क्षेत्रवासी, तथा जनपदवासियों में खुशी की लहर दौड़ गई।

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