Chandauli news : यूपी के बहुचर्चित कारतूस कांड में रामपुर कोर्ट ने 20 पुलिसवालों समेत 24 दोषियों को सजा सुनाई है. शुक्रवार को कोर्ट ने 24 दोषियों को 10-10 साल की सजा सुनाई है. 2010 यानी 13 साल पुराने इस मामले में गुरुवार को कोर्ट ने 24 को दोषी ठहराया था. यह पूरा मामला सरकारी हथियारों की सप्लाई नक्सलियों को करने से जुड़ा हुआ था.
रामपुर कोर्ट के स्पेशल जज विजय कुमार ने सभी दोषियों पर 10-10 हजार का जुर्माना भी लगाया है. इससे पहले, शुक्रवार सुबह सभी दोषियों को कड़ी सुरक्षा में कोर्ट लाया गया था. इस दौरान कोई बैग से तो कोई रुमाल से मुंह छिपाए था. हाथ में हथकड़ी लगी थी. कारतूस कांड में पुलिस ने 25 पुलिसवालों को आरोपी बनाया था. इनमें एक आरोपी PAC के रिटायर्ड दरोगा यशोदानंदन की मौत हो चुकी है.
कारतूस कांड 2010 का है. STF को प्रदेश के कई जिलों से सरकारी ऑर्म्स के सौदे का इनपुट मिला. इसके बाद 26 अप्रैल 2010 को सटीक सूचना के बाद STF ने रामपुर के ज्वालानगर में रेलवे क्रासिंग के पास से मुख्य आरोपी PAC के रिटायर्ड दरोगा यशोदानंदन को अरेस्ट किया. इसके साथ ही CRPF के विनोद पासवान और विनेश कुमार को भी पकड़ा.
STF ने इन तीनों के पास से ढाई क्विंटल खोखा कारतूस और 1.76 लाख रुपए बरामद किया. साथ ही 12 बोरों में हथियारों के साथ ही इम्यूनिशन जब्त किया. इनमें इंसास राइफल भी शामिल थी. सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (ADC) क्रिमिनल प्रताप कुमार मौर्य के मुताबिक, छापेमारी के दौरान यशोदानंदन के पास से एक डायरी मिली. इनमें पुलिस और पीएसी के आर्मरर के नाम और नंबर लिखे थे. आर्मरर का काम फोर्स में हथियारों का हिसाब-किताब और देखरेख करना होता है.
इसके बाद STF ने तीनों से सख्त पूछताछ की तो कड़ियां खुलने लगीं. जांच में आर्मरर के नाम सामने आए, जो यूपी के अन्य जिलों में तैनात थे. इसके अलावा, डायरी की भी मदद ली गई. फिर तीनों आरोपियों की निशानदेही पर बस्ती, गोंडा और वाराणसी समेत कई जिलों से पुलिस और PAC के आर्मोरर को गिरफ्तार किया.
इसके बाद सभी को बी- वारंट पर रामपुर लाया गया था. पूरे मामले की तफ्तीश के बाद पुलिस ने 27 जुलाई 2010 को मामले की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की. इसके तीन साल बाद 31 मई 2013 को कोर्ट ने सभी 25 आरोपियों पर आरोप तय कर दिए. मामले में इसी 4 अक्टूबर को बहस पूरी हो गई थी. बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में CRPF कर्मियों पर नक्सलियों के हमले के बाद लखनऊ STF को इनपुट मिला था कि पुलिस और CRPF को दिए जाने वाले कारतूसों को बेचा जा रहा है.
इस मामले में सभी आरोपियों ने गिरफ्तारी के बाद जमानत ली, तो पुलिस ने जमानत खारिज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पैरवी की. सरकारी शस्तरागारों से निकले कारतूस कहां जाते हैं, कैसे जाते हैं. इसका पता लगाने के लिए पुलिस टीम ने दिन रात मेहनत की. इस दौरान यशोदानंद की डायरी, उसके बैंक ट्रांजेक्शन की जांच की गई. इसके बाद कड़ी से कड़ी मिली और बड़ी संख्या में पुलिस वाले गिरप्तार हुए.
बंदूक की नगरी मुंगेर तक दी गई दबिश
इस मामले में रामपुर पुलिस ने यूपी के सभी कोनों को नाप दिया. झांसी, बनारस, कानपुर, मऊ, आजमगढ़ समेत एक दर्जन जिलों में दबिश दी गई. इसके साथ ही अवैध हथियारों के लिए फेमस बिहार के मुंगेर जिले में भी पुलिस ने रेड की. 2011 तक वहां 2527 रजिस्टर्ड फैक्ट्रियां थीं, जिनमें असलहे बनते थे. पता चला कि पकड़े गए सिविलियन बिहार के मुरलीधर ने यहां नेटवर्क बना रखा था. मुरली से ही यशोदानंद सप्लाई मंगवाता था.
ये रहे सभी 24 दोषियों के नाम
दोषियों में चार सिविलियन के अलावा 20 पुलिस, पीएसी और CRPF के कर्मचारी हैं. इनमें यशोदानन्द सिंह, विनोद पासवान, विनेश, नाथीराम, राम कृष्ण शुक्ला, राम कृपाल, शंकर, दिलीप राय, सुशील कुमार मिश्रा, जितेंद्र कुमार सिंह, राजेश शाही, अमर सिंह, वंश लाल, अखिलेश कुमार पांडेय, अमरेश कुमार यादव, दिनेश कुमार द्विवेदी, राजेश कुमार सिंह, मनीष राय, मुरलीधर शर्मा, आकाश उर्फ गुड्डू, विनोद कुमार सिंह, ओमप्रकाश सिंह, रजय पाल सिंह, लोकनाथ और बनवारी लाल शामिल है.