Ghazipur news: सादात ब्लॉक में मनरेगा घोटाला: कागज़ों पर चल रहा काम, गरीबों के नाम पर हो रही कमाई

On: Thursday, July 10, 2025 9:28 PM
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गाजीपुर : ज़िले के सादात ब्लॉक के ग्राम सभा बिजहरी से मनरेगा योजना में एक बड़े घोटाले का मामला सामने आया है। इस योजना का मकसद है ग्रामीण इलाकों में गरीब और बेरोज़गार लोगों को रोज़गार देना। लेकिन जब इस योजना में ही भ्रष्टाचार हो, तो गरीबों को रोज़गार की जगह ठगी और धोखा ही मिलता है।

गांव के एक खेत के बगल में पोखरी खुदाई का कार्य मनरेगा के तहत कराया जा रहा है। गांव के लोगों का कहना है कि इस कार्य में मजदूरों की जगह जेसीबी मशीन से खुदाई करवाई गई। मजदूरों को काम पर बुलाया ही नहीं गया। सिर्फ दो दिन जेसीबी से खुदाई कराई गई और वहीं काम रोक दिया गया। लेकिन मस्टर रोल यानी काम पर मजदूरों की हाजिरी वाले कागज़ में 110 मजदूरों के नाम दर्ज कर दिए गए।



ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि एक ही मजदूर की अलग-अलग एंगल से फोटो खींचकर, उसे अलग-अलग नामों से दिखाया गया ताकि ऐसा लगे कि बहुत सारे लोग काम कर रहे हैं। गांव की महिलाओं को मौके पर बुलाकर सिर्फ फोटो ली गई, उनके नाम से फर्जी हाजिरी भर दी गई और फिर उनके नाम पर पैसे निकाले गए।

लेकिन असली पैसा मजदूरों तक नहीं पहुंचा। गांव के लोगों का आरोप है कि मजदूरी के पैसे का बड़ा हिस्सा ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक और सचिव के बीच आपस में बांट लिया गया। जिन गरीब मजदूरों के नाम पर पैसा निकला, उन्हें केवल ₹500 दिए गए, जबकि बाकी हज़ारों रुपये बंदरबांट में चले गए।

ग्रामीणों ने इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि जब भी कोई शिकायत की जाती है, उसे दबा दिया जाता है। कोई कार्रवाई नहीं होती। लोगों का ये भी कहना है कि जब सरकारी योजनाएं भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएं, तो गरीबों के लिए उम्मीद की कोई किरण नहीं बचती।



मनरेगा जैसी योजना का उद्देश्य था गरीबों को सम्मान के साथ काम और मज़दूरी देना, लेकिन अब उसी योजना में भ्रष्टाचार का जाल बिछ गया है। ऐसे में ज़रूरी है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और जो भी दोषी हों – चाहे वह प्रधान हो, सचिव हो या कोई और – उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

अब सवाल उठता है कि कब तक गरीबों के नाम पर यह खेल चलता रहेगा? कब तक कागज़ों पर काम होता रहेगा और हक़दार लोग ठगे जाते रहेंगे?

सरकार और प्रशासन से मांग की जा रही है कि इस तरह के मामलों को गंभीरता से लिया जाए, ताकि ग्रामीण विकास की योजनाएं सच में गरीबों के जीवन में बदलाव ला सकें – ना कि भ्रष्टाचारियों की जेब भरने का ज़रिया बनें।

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