चंदौली। जनपद चंदौली के मौजा बगही कुंभापुर, परगना नरवन, तहसील सदर की भूमि संख्या 739, 752, 790 पर चल रहे विवाद ने पूरे राजस्व तंत्र की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
ग्राम काजीपुर निवासी राधेश्याम चौबे (दत्तक पुत्र) ने नियमानुसार अपने पिता सरजू चौबे (मृतक) की संपत्ति में वारिस के रूप में नाम दर्ज करवाया, लेकिन आज वह अपने ही अधिकार के लिए दर-दर भटक रहा है, जबकि एक कथित भू-माफिया प्रमोद कुमार सिंह उस ज़मीन पर वर्षों से खुलेआम कब्जा करके खेती कर रहा है, और प्रशासन आँख मूँदकर बैठा है।
पूरा मामला क्या है आइए जानते है.
पीड़ित पक्ष राधेश्याम चौबे(दत्तक पुत्र) ने बताया कि उनके पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने नियमानुसार राजस्व अभिलेखों में अपना नाम दर्ज कराया, किंतु उनके प्राकृतिक पिता जन्मदाता ने पीड़ित के नाबालिग होने की दशा में अपने पांच पुत्रों का नाम अवैधानिक तरीके से राजस्व अभिलेख में दर्ज कर दिया एवं इसी फर्जीवाड़े ने विवाद खड़ा कर दिया। इसी का लाभ उठाते हुए पीड़ित के भाइयों ने कुछ जमीन तीसरे व्यक्ति प्रमोद कुमार सिंह को बेच दी।
वहीं पीड़ित अपना हक पाने के लिए उपजिलाधिकारी से लेकर लखनऊ स्थित राजस्व परिषद तक गया, जहां 20.08.2015 को अंतिम आदेश पीड़ित के पक्ष में पारित हुआ। परन्तु इस आदेश को चैलेंज करते हुए विपक्षी द्वारा न्यायालय का रुख किया गया व स्टे ऑर्डर ले लिया, न्यायालय द्वारा दिनांक 08.10.2015 के आदेश के अनुसार,
“इस भूमि पर कोई तीसरा पक्ष अपना हित न बना सके”
और अगली तारीख तक कोई क्रियाविधिक आदेश लागू नहीं होगा” (stay order)।
इसी बीच वर्ष 2014 में राधेश्याम द्वारा अपनी हिस्से की जमीन पर HDFC बैंक से ऋण लिया गया जिसके भुगतान न होने की दशा में वर्ष 2018 में कुर्क कर दिया गया.परन्तु इस पूरी घटना में मोड़ तब आया जब 2024 में बैंक द्वारा एक नोटिस राधेश्याम को भेजी गई जिसमें ऋण चूकता न होने की दशा में कानूनी प्रक्रिया अपनाने की बात कही गई बड़ी बात यह है कि एक तरफ पीड़ित राधेश्याम की जमीन कुर्क की गई सालों पहले और बाद में ऋण चूकता करने की नोटिस.
तदोपरांत पीड़ित द्वारा इस नोटिस के आधार पर न्यायालय में याचिका दाखिल की गई जिसके बाद न्यायालय द्वारा इस पूरे विषय पर स्पष्टीकरण मांगा गया.
पूरी घटना से जुड़ी अहम बात
1. उत्तराधिकार आदेश: राजस्व परिषद, लखनऊ ने 20.08.2015 को आदेश पारित कर पीड़ित को वैध उत्तराधिकारी माना।
2.वर्ष 2015 में ही स्टे ऑर्डर आया.
3. स्टे ऑर्डर के बावजूद 2018 में कुर्क की कार्यवाही
4. 2018 से ही प्रमोद कुमार सिंह द्वारा कुर्क की गई संपत्ति पर खेती जब उक्त भूमि को राजस्व संपत्ति घोषित किया गया है तो इस पर बिना पट्टा या लीज के खेती प्रमोद कुमार सिंह को कही न कही भू माफिया के श्रेणी में ला खड़ा करता है! दूसरा यह कि जब स्टे है तो इस पर खेती सीधा-सीधा Contempt of Court (अवमानना) का मामला बनता है — पर कार्रवाई कौन करेगा?
कुर्की की कार्यवाही भी संदेह के घेरे में
बड़ी बात यह है कि 2018 में HDFC Bank द्वारा इस ज़मीन को कुर्क किया गया जबकि 2015 से इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका लंबित थी,और 08.10.2015 को माननीय न्यायालय ने आदेश दे दिया था कि तीसरा पक्ष कोई हस्तक्षेप न करे,कोई कार्रवाई लागू न की जाए” (यथास्थिति लागू) तो इस स्थिति में 2018 की कुर्की पूरी तरह से कोर्ट आदेश की अवहेलना (Contempt of Court) में आती है — अगर उस समय बैंक ने कोर्ट से अनुमति नहीं ली थी।
और देखा जाय तो कानूनी दृष्टिकोण से दो बातें स्पष्ट करनी होंगी:
- क्या HDFC Bank ने कुर्की के लिए कोर्ट की अनुमति ली थी या नहीं?
यदि बिना कोर्ट की अनुमति यह कुर्क की गई, तो यह गैरकानूनी है।
- क्या बैंक को उस जमीन की विवाद की जानकारी थी?
यदि बैंक को याचिका और स्टे का पता था और फिर भी कुर्की की — यह जानबूझकर आदेश उल्लंघन है।
कुर्क संपत्ति पर खेती — किस नियम के तहत?
2014: एचडीएफसी बैंक से लिया गया ऋण अदायगी न होने पर भूमि कुर्क की गई। वर्ष 2018 में कुर्क किया गया और वर्ष 2018 से ही प्रमोद कुमार सिंह नामक व्यक्ति उस पर खेती कर रहा है।
प्रश्न यह उठता है कि यदि बैंक ने कोर्ट से कुर्क की अनुमति ली थी और कुर्क की कार्यवाही हुई तो सरकारी संपत्ति पर निजी खेती कैसे हो रही है?
जबकि इसके लिए पीड़ित ने बताया कि तहसील दिवसों पर, रजिस्टर्ड डाक द्वारा, और व्यक्तिगत रूप से सैकड़ों बार अधिकारियों से शिकायत की गई, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। राज्य की संपत्ति पर खुलेआम अतिक्रमण और अदालत के आदेशों की अनदेखी एक बड़ी लापरवाही को दर्शाता है और ऐसा है तो उत्तर है — मिलीभगत और प्रशासनिक मूक सहमति!
कानून क्या कहता है?
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 201:
> यदि कोई व्यक्ति राजकीय भूमि या विवादित भूमि पर अवैध कब्जा करता है, तो सक्षम अधिकारी उसे हटाने का आदेश पारित कर सकता है।
भू-राजस्व अधिनियम 1901 की धारा 33/39:
> फर्जी अभिलेखों से नाम दर्ज करना दंडनीय अपराध है।
बड़ा सवाल:
तहसील दिवसों में सैकड़ों बार प्रार्थना पत्र।रजिस्टर्ड डाक, लोक सुनवाई, अधिकारियों से सीधा संवाद।
पर कोई कार्रवाई नहीं।
सवाल यह उठता है क्या भू-माफिया के सामने लोक प्रशासन नतमस्तक हो चुका है?क्या जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी और तहसीलदार अपने कर्तव्य निर्वहन में असफल नहीं हैं?
इसमें पीड़ित राधेश्याम को क्या मिला एक तरफ कुर्की की कार्यवाही दूसरी तरफ ऋण चूकता करने को बैंक की नोटिस और भूमि पर स्टे, हालात यह है कि राधेश्याम आज दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर है.
युवा संघर्ष मोर्चा ने उठाई आवाज
युवा संघर्ष मोर्चा के संयोजक शैलेंद्र पांडे ने बताया कि इस पूरे प्रकरण को लेकर के विगत दिन पूर्व एसडीएम से मिले थे और जानकारी दी थी तथा कार्रवाई की मांग भी की थी, मगर अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
इसको लेकर शैलेन्द्र पांडे ने बताया कि अब यह लड़ाई अकेले राधेश्याम चौबे की नहीं है नहीं सिर्फ एक ज़मीन विवाद है, बल्कि ‘लोकतंत्र बनाम लापरवाह तंत्र’ की लड़ाई है और न्याय मिलने तक जारी रहेगी.
कब जागेगा सिस्टम?
1. सरकारी ज़मीन पर अवैध खेती जारी।
2. उच्च न्यायालय के आदेश लागू नहीं।
3. ऋण अदायगी नहीं, फिर भी कुर्क संपत्ति से लाभ।
4. प्रशासनिक मौन, ज़मीन विवाद को हवा दे रहा है।
🔴 VC खबर की प्रमुख माँगें:
1. तुरंत प्रमोद कुमार सिंह से ज़मीन खाली कराई जाए।
2. प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका की न्यायिक जांच हो ।
VC खबर प्रशासन से अपेक्षा करता है कि वह इस प्रकरण में न सिर्फ जवाब दे, बल्कि उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित कर राजस्व की रक्षा करे।”